इस वर्तमान समय में जहा लोग कोविड -19 के वजह से काफी डरे हुए है | Gandhism in present day IN HINDI और इन सब बातो को देखते हुए यह भी आकलन किया जा सकता है की ऐसा ही चलता रहा तो इसके आर्थिक परिणाम भी लोगों को भविष्य के प्रति आशंकित करेंगे | कभी हाथरस जैसे कांड लोगों को चिंत में डाले रहते है | और तो और कभी ड्रग्स जैसे मामले समाज में बुरे दर को पनपने देते है | आज हमारा पूरा देश जैस की मानो डर से सहम चूका है और वह सभी लालच की युद्ध में सामिल हो चुके है |जहा देखो लोग अपने बारे में ही सोचते रहते है | दुसरो की चिंता कोई नहीं करता है |
ऐसे में गांधीवाद की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक हो जाती है। बहुत सारे लोग यह सोचते है की क्या अगर हम गांधीवाद को अपनाते है तो क्या हमें भी टोपी या धोती पहनने की जरूरत है या फिर ब्रह्मचर्य अपनाने या फिर घृणा करने की आवश्यकता है? तो हम आपको बता दे की आपको ऐसा कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है? बल्कि अगर आप सबके दिल से घृणा को दूर करना चाहते है तो आपको गांधीवाद को अपनाने की जरूरत है।
Also Read This
- Rajat Sharma biography 2023 ( Aap Ki Adalat ) In Hindi | रजत शर्मा का जीवन परिचय
- पूरी जानकारी – 2023 जानें क्या अंतर होता है नार्को एनालिसिस और पोलीग्राफटेस्ट में | अंतर और विवाद
- Gautam Adani Biography in Hindi 2023 | गौतम अडानी कौन है ? जीवन परिचय ,कुल संपत्ति, नेटवर्थ, बिज़नेस, कास्ट, घर, कंपनी
- कछुए में कितने प्रकार के दांत होते हैं? How many types of teeth does a turtle have? in hindi |
- विक्रम अंबालाल साराभाई – जिवन परिचय | Biography of Vikram Ambalal Sarabhai – in hindi |
यह सब तो ठीक है क्या आप जानते है की गांधीवादी क्या है Gandhism in present day ?
तो आइए जानते है गांधीवादी क्या है ? किसी भी शोषण का अहिंसक प्रतिरोध , और पहले दूसरों की सेवा करना , संचय से पहले त्याग करना , झूठ के स्थान पर सच बोलना , अपने बजाय देश और समाज की चिंता अधिक करना यही सब बातो और र्कोमो को गांधीवादी का नाम दिया गया है |


जैसे की आप सब यह जानते ही है की आज कल के जमाने में लोग अच्छे आदर्शों Gandhism in present day की जगह असत्य, अवसरवाद, धोखा, चालाकी, लालच व स्वार्थपरता ऐसे सोचो को अपनाया जा रहा है | और आजकल के जमाने में लोग प्रेम, मानवता, भाईचारे जैसे उच्च आदर्शों को मिटाने पर लग गए है | देश हर रोज नई – 2 चीजे खोजने में लगी है लेकिन एक ओर छोटी सी वायरस को हारा पाने में सझम नहीं है | इस तरह से देश में शान्ति को दुबारा लाने के लिए गांधीवाद के बिचारो और कामो को दुबारा किया जा रहा है |आज गांधीवाद नए स्वरूप में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो उठा है।
जैसे की दोस्तों आप सब यह भली भाति जानते ही है की गांधी जी धर्म और सदाचार को कभी ज्यादा मानते थे | उनके लिए धर्म और आचरण एवं एक दुसरे से मिल मिलाव में बंधा नहीं हुआ वरन् आचरण की एक विधि के अनुसार गांधी जी साधन व साध्य दोनों पर ही काफी अच्छे रूप से जोर देते थे | गांधी जी के अनुसार साधन व साध्य के मध्य बीज व पेड़ के जैसा संबंध है होता है | उन्होंने यह भी कहा की अगर बिज सही नहीं होंगे तो स्वस्थ पेड़ की उम्मीद करना सही नहीं है यह व्यर्थ है | गांधी जी ने पहली बार वर्ष 1983 से 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में गांधीवादी विचारधारा को विकसित किया
गांधीवादी का मार्ग सिर्फ राजनितिक व नैतिक और धार्मिक नहीं है | बल्कि पारंपरिक और सबसे आगे नए रूप में विकसित है और हां यह जितना देखने में सरल है उतना ही यह जटिल भी है | या कई रूपों में और पश्चिमी प्रभावों का चिन्ह है | यह गांधीवादी को गांधी जी ने उजागर किया था | लेकिन यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है | गांधी जी ने इस गांधीवादी विचार को कुछ प्रेरणादायको से विकसित किया है जिनमे से कुछ यह है
जैसे – भगवतगीता, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, बाइबिल, गोपाल कृष्ण गोखले, टॉलस्टॉय, जॉन रस्किन आदि
और तो और टॉलस्टॉय की पुस्तक ‘द किंगडम ऑफ गॉड इज विदिन यू’ इस पुस्तक ने महात्मा गांधी जी पर काफी प्रभाव डाला था | गांधी जी एक और पुस्तक से काफी प्रभावित हुए थे जिसका नाम रस्किन की पुस्तक ‘अंटू दिस लास्ट’ था इस पुस्तक की बाते उन्होंने अपने जीवन में उतार लिए और वह गांधीवादी को उच्च मार्ग देने में लग गए |


जैसे की आपको बता दे की गांधीजी ने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ छुआछूत उन्मूलन, हिन्दू-मुस्लिम एकता, चरखा और खादी को बढ़ावा, और ग्राम स्वराज का प्रसार, प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा और परंपरागत चिकित्सीय ज्ञान के उपयोग सहित तमाम दूसरे उद्देश्यों पर कार्य करना निरंतर जारी रखा। सत्य के साथ काम करके गांधीजी के प्रयोगों ने उनके इस विश्वास को और भी पक्का कर दिया था कि सत्य की सदा विजय होती है
और सही रास्ता सत्य का रास्ता होता है ।आज मानवता की मुक्ति सत्य का रास्ता अपनाने से ही है। गांधी जी सत्य को ईश्वर का पर्याय मानते थे।गांधीजी का मत था कि सत्य सदैव विजयी होता है।
1. सत्य गांधी जी के लिए क्या था ? :
गांधीजी सत्य के बहुत बड़े आग्रही थे वह सत्य को बहुत मानते थे । वे सत्य को ईश्वर के सामान मानते थे। सत्य उनके लिये सबसे बड़ा सिद्धांत था।वे वचन और चिंतन में सत्य की स्थापना का प्रयत्न करते थे वह सत्य को सब कुछ मानते थे सत्य के बिना वह कोई भी कम नहीं किया करते थे ।
2. अहिंसा गांधी जी के लिए क्या था ? :
गांधीजी के कहने के अनुसार अगर आप पाने मन या वचन से किसी को दुःख देते हो तो वह अहिंसा कहलाएगी गांधीजी के विचारों का सबसे बड़ा लक्ष्य था सत्य एवं अहिंसा के माध्यम से विरोधियों का दिल और दिमाग को बदलना |
अहिंसा का अर्थ क्या होता है ?:
अहिंसा का सामान्य अर्थ है ‘हिंसा न करना’। … इसका व्यापक अर्थ है – किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन में किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है।
अगर इस समय लोग इस सिद्धांत का पालन करेंगे तो वह आज इस बुरे दशा और जीवनी स्थर को सुधार सकते है | आज पुरे देश में लोग आज पुरे विशव के लोग अपने समस्याओं का हल हिंसा के माध्यम से ढूंढ रहे है। आज कल के


इस दौर में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा ही खत्म होती जा रही हैअमेरिका, चीन, उत्तर कोरिया, ईरान जैसे देश हिंसा के माध्यम से प्रमुख शक्ति बनने की होड़ एवं दूसरों पर वर्चस्व के इरादे से हिंसा का सहारा लेते जा रहे हैं।
इस हेतु वैश्विक रूप से शस्त्रों की होड़ लग गई है।यह अंधी दौड़ दुनिया को अंतत: विनाश की ओर ले जाता हैआज अहिंसा जैसे सिद्धांतों का पालन करते हुए विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है जिसकी आज पूरे विश्व को आवश्यकता है।
3. सत्याग्रह क्या है ? :
“सत्याग्रह‘ का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य अ आग्रह) सत्य को पकड़े रहना और इसके साथ अहिंषा को मानना । … इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, “विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।
गांधीजी का मत था कि निष्क्रिय प्रतिरोध कठोर-से-कठोर हृदय को भी पिघला सकता है। वे इसे दुर्बल मनुष्य का शस्त्र नहीं मानते थे।
4. सर्वोदय क्या है ? :
सर्वोदय शब्द का अर्थ होता है ‘सार्वभौमिक उत्थान’ यह शब्द पहली बार गांधीजी ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अंटू दिस लास्ट’ में पढ़ा था सर्वोदय ऐसे वर्गविहीन, जातिविहीन और शोषण-मुक्त समाज की स्थापना करना चाहता है सभी लोग निश्चिंत रूप से रहे और वहा कोई जातिवाद या किसी समुदाय का न तो संहार हो और न ही बहिष्कार हो ।
सर्वोदय शब्द गांधीजी द्वारा प्रतिपादित एक ऐसा विचार है जिसमें ‘सर्वभूतहितं रता:’ की भारतीय कल्पना, सुकरात की ‘सत्य साधना’ और रस्किन की ‘अंत्योदय’ की अवधारणा सब कुछ सम्मिलित है।गांधीजी ने कहा था ‘‘मैं अपने पीछे कोई पंथ या संप्रदाय नहीं छोड़ना चाहता हूँ।’’ यही कारण है कि सर्वोदय आज एक समर्थ जीवन, समग्र जीवन और संपूर्ण जीवन का पयार्य बन चुका है।
आज पूरा विश्व एक ऐसे समाज की खोज में है जहा किसी का शोषण न हो , और वर्ग, जाति आदि की कोई जगह न हो। सब आजाद हो कोई मतभेद न हो नहीं कोई किसी पर दबाव डाल सके
5. स्वराज क्या है ? :
हालाँकि स्वराज शब्द का अर्थ स्व-शासन होता है ? , लेकिन गांधीजी ने इसे एक ऐसी अभिन्न क्रांति की संज्ञा दी जो कि जीवन के सभी क्षेत्रों को समाहित करती है।गांधी जी के लिये स्वराज का अर्थ व्यक्तियों के स्वराज (स्व-शासन) से था और इसलिये उन्होंने इसे साफ़ साफ़ बोला है कि उनके लिये स्वराज का मतलब अपने देशवासियों हेतु स्वतंत्रता है और अपने संपूर्ण अर्थों में स्वराज स्वतंत्रता से कहीं अधिक है।
6. ट्रस्टीशिप क्या है ? :
ट्रस्टीशिप का शब्द अर्थ एक सामाजिक-आर्थिक दर्शन है | जिसे गांधीजी द्वारा जारी किया गया था।यह अमीर लोगों को एक ऐसा माध्यम प्रदान करता है जिसके द्वारा वे गरीब और असहाय लोगों की मदद कर सकें। वर्तमान समय में गांधीजी की यह विचारधारा काफी मददगार साबित हुआ था जब विश्व में गरीबी और भूखमरी चारों तरफ फ़ैल रही थी | तब जितने भी आमिर लोग थे वह कही ना गरीबो की मदद कर रहे थे |
6. स्वदेशी क्या है ? :
स्वदेशी का अर्थ है- ‘अपने देश का’ अथवा ‘अपने देश में निर्मित’। वृहद अर्थ में किसी भौगोलिक क्षेत्र में जन्मी, निर्मित या कल्पित वस्तुओं, नीतियों, विचारों को स्वदेशी कहते हैं। … आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होंने इसे “स्वराज की आत्मा” कहा है ।
गांधीजी का मानना था कि इससे स्वतंत्रता (स्वराज) को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि भारत का ब्रिटिश नियंत्रण उनके स्वदेशी उद्योगों के नियंत्रण में निहित था।आज जब अमेरिका एवं चीन जैसे देश व्यापार
युद्ध के माध्यम से अपने देश को सशक्त और दूसरे देशों की आर्थिक व्यवस्था को कमज़ोर करने पर तुले हैं।ऐसी स्थिति में स्वदेशी की यह संकल्पना देश के घरेलू उद्योगों और कारीगरों हेतु एक वरदान की भांति सिद्ध होगा।